किसी जमाने में ये जगह राजाओं का गढ़ हुआ करती थी, सरकार कोशिश करे तो ये जगह पर्यटन के साथ रोजगार का आधार बन सकती है।
यह मंदिर गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित है, जिसे 52 गढ़ों में से एक गढ़ परगना बधाण के रूप में जाना जाता है। बधाण गढ़ी को परगना बधाण की ईष्ट देवी भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर मां भगवती नंदा राजराजेश्वरी दक्षिणेश्वर काली रूप में भूमिगत विराजमान रहती हैं। इस मंदिर में आप आज भी प्राचीन कलाकृतियां देख सकते हैं। यह मंदिर अपनी प्राचीन मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। 21वीं सदी में भी इस प्राचीन मंदिर में पीने का पानी कुएं से ही निकाला जाता है। मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं। मंदिर से त्रिशूल, नंदा घुंघुटी और पंचाचूली पर्वत की हिम श्रृंखला दिखाई देती हैं, जो लोगों का मन मोह लेती हैं।
हरे-भरे पेड़ों से घिरे इस मंदिर की खूबसूरती को शब्दों में नहीं बताया जा सकता। मां बधाण गढ़ी में गढ़वाल और कुमाऊं, दोनों क्षेत्रों के लोगों की अटूट आस्था है। कहते हैं मां बधाण गढ़ी सभी श्रद्धालुओं की मुराद पूरी करती है। यही वजह है कि मंदिर में हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। समुद्र तल से इस स्थान की दूरी 8612 फीट है। मां बधाण गढ़ी का मंदिर ग्वालदम से महज 5 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए बिनातोली से 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। किसी जमाने में ये जगह राजाओं का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन आज सरकार इस जगह की सुध नहीं ले रही। यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। सरकार मंदिर के सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार पर ध्यान दे तो यह मंदिर धार्मिक पर्यटन के साथ रोजगार का आधार बन सकता है।