सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ रिट दायर करने वाले लोगों से लेकर सामान्य जनता ने भी जनहितकारी माना है। बुधवार को सर्वोच्च न्यायलय ने उन्हें बड़ी राहत दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले में पुनर्वास योजना तैयार करने का आदेश देकर वहां के निवासियों को बड़ी राहत दी है। इस आदेश ने लोगों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि उन्हें पक्के मकानों से हटाने से पहले उचित पुनर्वास मिलेगा। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करने वाले और आम जनता ने भी इस निर्णय को जनहित में बताया है। उनका कहना है कि रेलवे और प्रशासन ने उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें न्याय की उम्मीद थी।
इसपर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमारी उम्मीद थी कि रेलवे पहले अपनी जमीन को स्पष्ट रूप से चिह्नित करे। इससे उन लोगों को मदद मिलेगी जो रेलवे की भूमि पर कब्जा नहीं कर रहे हैं। रेलवे को अपने विस्तार के योजनाओं और प्रभावित लोगों के पुनर्वास की योजना भी स्पष्ट करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अब इसी दिशा में काम कर रही है। एक ने कहा कि रेलवे के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है। रेलवे अपनी जमीन को जबरन बताने का प्रयास कर रहा है और अदालत को गुमराह कर रहा है। अंततः सच की विजय होगी और बनभूलपुरा के लोग अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रेलवे का सीमांकन गलत है और हम आखिरी तक अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
पिछले चार दशकों से रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण जारी है और वर्तमान में इस भूमि पर 4365 परिवार रह रहे हैं। गौलापार के आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी ने अतिक्रमण हटाने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया लेकिन कुछ लोग इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चले गए। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया है। इसपर हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय पहलू और विकास की दोनों धारणाओं पर ध्यान दिया है। हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। कोर्ट ने रेलवे, भारत सरकार और राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि रेलवे के विस्तार के लिए आवश्यक भूमि की पहचान करें और बताएं कि कितने लोग विस्थापित होंगे। इसके अलावा विस्थापन की प्रक्रिया का रोडमैप भी तैयार करने को कहा गया है।