कहते हैं नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, मां उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं।
सिद्धपीठ एवं शक्ति पीठ की भूमि कहे जाने वाले हरिद्वार में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं। कहा जाता है कि यहां पूजा करने वाले की मुराद मां भगवती हमेशा पूरी करती हैं। इन मंदिरों में से एक यहां का प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर है। देश में मौजूद 52 पीठों में से एक नील पर्वत पर स्थित इस मंदिर में मां दुर्गा दो रूपों में विराजमान हैं। एक रूप में मां चंडी खंभ के रूप में विराजमान हैं। वहीं दूसरे रूप में माता मंगल चंडिका के रूप में पूजी जाती हैं। इस प्राचीन मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र में पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है। कहते हैं नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, मां उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। गंगा से सटे नील पर्वत पर मां चंडी का दरबार आदि काल से है। मां चंडी देवी से मांगी गई मुराद के लिए यहां पर मंदिर में धागा बांधा जाता है।
कामना पूरी होने पर भक्तों को इस धागे को खोलने के लिए यहां आना पड़ता है। मंदिर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 3 किलोमीटर पैदल चल कर कठिन चढ़ाई को पार करना पड़ता है। मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन से करीब 3 किलोमीटर दूर है। यहां ऑटो, बैटरी रिक्शा, टैक्सी के अलावा उड़नखटोले (ट्रॉली) से भी पहुंचा जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी जगह पर मां चंडी ने खंभ के रूप में प्रकट होकर दैत्य शुंभ-निशुंभ का वध किया था। इसके बाद देवताओं के निवेदन पर मां चंडी इसी स्थान पर विराजमान हुईं। 8वीं शताब्दी में मां चंडी देवी के मंदिर का जीर्णोद्धार जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने विधिवत रूप से कराया था। हरिद्वार में मां चंडी देवी के दरबार में श्रद्धालु दूर-दूर से हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। यहां मां चंडी आदिकाल से अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं।