सरकार की अनदेखी के चलते आपदा प्रभावित परिवारों के 6 से 7 लोग सरकारी स्कूल के एक-एक कमरे में जीवनयापन करने को मजबूर हैं।
एक घर सिर्फ चार दीवारों का ढांचा भर नहीं होता। ये वो जगह है, जहां हमारा बचपन बीतता है, यहीं पर हम जिंदगी का ककहरा सिखते हैं, नई यादें संजोते हैं, लेकिन जब तिनका-तिनका जोड़कर बनाए गए ये घर बिखरते हैं, तो जिंदगी भी मानों बिखर सी जाती है। उत्तरकाशी के कंकराड़ी गांव के तीन परिवार ऐसे ही दर्द से गुजर रहे हैं। चार महीने पहले जुलाई में आई आपदा के चलते गांव के लोगों के घर और दुकानें आपदा की भेंट चढ़ गई थीं। रहने को छत न रही तो प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को राजकीय इंटर कॉलेज मुस्टिकसौड़ के भवन के एक-एक कमरे में ठहरा दिया। 4 महीने से ये परिवार इन्हीं कमरों में गुजारा कर रहे हैं। सिर पर छत न रहने की वजह से पिछले दिनों आपदा प्रभावित मोहन सिंह गुसाईं की छोटी बेटी रोशनी की शादी भी सरकारी स्कूल के एक कमरे में ही संपन्न करानी पड़ी। हर पिता की तरह मोहन सिंह भी अपनी बेटी को घर से विदा करना चाहते थे, लेकिन अरमान दिल में ही रह गए। रोशनी के परिवार को सरकारी स्कूल के एक कमरे में ही पूरी व्यवस्थाएं बनाकर रोशनी की शादी कर उसे विदा करना पड़ा। आगे पढ़िए
पीड़ित मोहन सिंह गुसाईं की बेटी रोशनी ने कहा कि हर बेटी का अरमान होता है कि जिस आंगन में बचपन बीता, उसी आंगन से डोली उठे, लेकिन सरकार और प्रशासन की बेरुखी के कारण उनके परिवार को सरकारी स्कूल में ही शादी की सभी रस्मों को निभाना पड़ा। हाल ये है कि अब सरकार के मुलाजिम उनका हाल पूछने की जहमत तक नहीं उठा रहे। बता दें कि बीते 18-19 जुलाई 2021 को उत्तरकाशी जनपद के मांडो, निराकोट सहित कंकराड़ी गांव में प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला था। मकानों के खतरे की जद में आने के बाद कंकराड़ी गांव के तीन परिवारों को सरकारी स्कूल के एक-एक कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। प्रशासन ने इन परिवारों के विस्थापन की बात कही थी, लेकिन गुजरते वक्त के साथ प्रशासन और सरकार इन्हें भूल गई। सरकार की अनदेखी के चलते प्रभावित परिवारों के 6 से 7 लोग सरकारी स्कूल के एक-एक कमरे में जीवनयापन करने को मजबूर हैं।