देहरादून के जगतग्राम में तीसरी सदी के कुछ अवशेष मिले हैं... जिन्हें देखकर पता चलता है कि कुणिंद शासक शीलवर्मन ने उत्तराखंड में चार अश्वमेध यज्ञ किए थे।
वीर भड़ों की वीरता के लिए मशहूर उत्तराखंड कभी चक्रवर्ती सम्राटों की यज्ञस्थली था। देवभूमि में कभी अश्वमेध के घोड़े दौड़ा करते थे। यहां एक नहीं बल्कि चार अश्वमेध यज्ञ हुए थे, जिसके सबूत आज भी जगतग्राम और उत्तरकाशी के पुरोला में देखे जा सकते हैं। देहरादून के जगतग्राम में तीसरी सदी के कुछ अवशेष मिले हैं। जिन्हें देखकर पता चलता है कि कुणिंद शासक शीलवर्मन ने उत्तराखंड में चार अश्वमेध यज्ञ किए थे। हालांकि उत्तराखंड में कुणिंद शासकों के बारे में अभी बहुत जानकारी नहीं है लेकिन समूचे उत्तराखंड में उनके सिक्के मिलते हैं, जो प्रमाण हैं कि ईसा से दो सदी पूर्व से लेकर तीसरी ईस्वी सदी तक उत्तराखंड में कुणिंदों का आधिपत्य रहा। यमुना नदी के बांए तट पर स्थित जगतग्राम नामक अश्वमेध स्थल अवशेष स्थल है। इस स्थल का उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1952-54 में किया था।
उत्खनन में कुणिंद शासक राजा शील वर्मन (लगभग तीसरी सदी) द्वारा कराए गए चार अश्वमेध यज्ञों में से तीन के अवशेष पक्की ईंटों से बनी यज्ञ वेदिकाओं के रूप में मिले हैं। इन्हीं ईंटों पर शील वर्मन ब्राह्मी लिपि संस्कृत भाषा में उत्कीर्णित अभिलेख भी मिला है। पुरोला में भी अश्वमेध यज्ञ के सबूत मिलते हैं। खास बात तो यह है कि देश में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला के अलावा अब तक कोई भी स्थल नहीं मिला है जहां अश्वमेध यज्ञ की वेदी का इतना स्पष्ट ढांचा हो। इस स्थल पर प्राचीन विशाल उत्खनित ईंटो से बनी यज्ञ वेदी मौजूद है। स्थल की खुदाई में लघु केंद्रीय कक्ष से शुंग कुषाण कालीन (दूसरी सदी ई.पूर्व से दूसरी सदी ई. ) मृदभांड, दीपक की राख, जली अस्थियां और काफी मात्रा में कुणिंद शासकों की मुद्राएं मिली हैं। पुरोला में मिली अश्वमेध यज्ञ वेदी जगतग्राम से पुरानी हैं। इन दोनो जगहों के अवशेषों से तीन अश्वमेध यज्ञों का तो पता चलता है लेकिन चौथे अश्वमेध यज्ञ के स्थान का अभी पता नहीं चल पाया है।